नायक आबिद खान, सेना मेडल (मरणोपरांत)

वीरगति दिवस
26 वर्ष पहले सन 1999 में कारगिल की पहाड़ियों पर लड़ा गया वह युद्ध आज भी सैनिकों और देशवासियों के मन में चलचित्र की भांति चित्रित है । जिन परिवारों के वीर सैनिक मातृभूमि के काम आये, यह दिवस आते ही उन परिवारों का मन धोखेबाज पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उद्वेलित हो उठता है । जिस तरह से पाकिस्तान पहले से योजना बनाकर नियंत्रण रेखा को पार कर हमारी भूमि पर दल बल के साथ आ बैठा था, यहां तक की बंकरों का भी निर्माण कर लिया था। वहीं पर हमारे जांबाज सैनिकों ने अपनी बनायी गयी त्वरित रणनीति और मौसम की दुश्वारियों पर विजय प्राप्त करते हुए वह वीरगाथा लिखी जो कि अद्वितीय है ।
जुलाई 1999 के दौरान 22 ग्रेनेडियर्स को बटालिक क्षेत्र में तैनात किया गया । यह यूनिट 70 इन्फैंट्री ब्रिगेड के अधीन कार्य कर रही थी, और 70 इन्फैंट्री ब्रिगेड, 3 इन्फैंट्री डिवीजन के पास था। 03 मई 1999 को जब सेना को घुसपैठ का पता चला तब सेना ने उन घुसपैठियों को खदेड़ने की योजना बनायी । सेना द्वारा भूमि की संरचना और दुश्मन की घुसपैठों का आकलन करने के बाद यह तय किया गया कि पहले दुश्मन के घुसपैठ क्षेत्र में कुछ क्षेत्र पर कब्जा किया जाए ताकि एल ओ सी तक पहुंचना आसन हो । उसके बाद प्रत्येक क्षेत्र को छोटे छोटे भागों में बांटकर घुसपैठियों से निपटा जाएगा। यह कार्य 12 जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री , 10 पैरा विशेष बल और लद्दाख स्काउट्स की एक कंपनी को सौंपा गया । 03 जून 1999 तक यह कार्य पूरा किया गया लेकिन दुश्मन पश्चिम, पूर्व और उत्तर की ओर पहाड़ियों पर कब्जा बनाए रखने में सफल रहा। नियंत्रण रेखा की ओर जाने वाला एक गलियारा सुरक्षित करने के बाद यह तय किया गया कि अन्य पहाड़ियों पर एक-एक करके कब्जा किया जाएगा। दुश्मन की मुख्य घुसपैठ और रक्षा, खालुबर पद्मा रिज लाइन पर थी।
खालूबार रिज के पॉइंट 4812, खालूबार, पॉइंट 5287, पॉइंट 5000 को पर कब्ज़ा करने के लिए 70 इन्फैंट्री ब्रिगेड ने 22 ग्रेनेडियर्स, 12 जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री, 1/11 गढ़वाल राइफल्स और लद्दाख स्काउट्स को जिम्मेदारी सौंपी गई। 22 ग्रेनेडियर्स की टुकड़ी को खालूबार और पॉइंट 5287 पर आक्रमण करना था । दुश्मन इस क्षेत्र में बहुत मजबूती से बैठा था , उसको यहां से खदेड़ना बहुत चुनौतीपूर्ण था। 22 ग्रेनेडियर्स द्वारा खालूबार और पॉइंट 5287 पर 30 जून/01 जुलाई की रात को हमला शुरू किया गया । नायक आबिद खान और उनके साथी मेजर अजित सिंह शेखावत के नेतृत्व में लक्ष्य तक पहुंचने में सफल रहे लेकिन उन पर दुश्मन द्वारा पलटवार किया गया। पाकिस्तानी सैनिक संख्या बल में ज्यादा थे लेकिन 22 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के वीर सैनिकों के जोश के आगे संख्याबल काम नहीं दे पाया । भय और नुकसान की चिंता के बिना तीन रात लगातार लड़ाई लड़ते और आगे बढ़ते रहे ।
दोनों ओर से हो रही भीषण गोलीबारी के दौरान नायक आबिद खान को गर्दन में गोली लग गयी और वह गंभीर रूप से घायल हो गये । गहरी चोटों और तेजी से होते रक्तस्राव के कारण वह वीरगति को प्राप्त हो गए । नायक आबिद खान और 22 ग्रेनेडियर्स के अन्य सैनिकों ने खालूबार और पॉइंट 5287 पर कब्जा करने के लिए इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । नायक आबिद खान को उनकी वीरता और कर्त्तव्य परायणता के लिए मरणोपरांत सेना मेडल से अलंकृत किया गया । नायक आबिद खान का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव में 11 जुलाई को किया गया । खालूबार रिज के इस युद्ध में जनपद आगरा के ग्रेनेडियर्स हसन मुहम्मद, हसन अली खां , मैनपुरी के सी क्यू एम एच अमरुद्दीन , मेरठ के ग्रेनेडियर्स जुबेर अहमद , मुजफ्फर नगर के ग्रेनेडियर्स रिजवान, गाजीपुर के ग्रेनेडियर्स इश्तियाक खां और हाथरस के हसन अली खां भी वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
नायक आबिद खान का जन्म 06 मई 1972 को जनपद हरदोई के गांव पाली में श्रीमती नत्थन बेगम और श्री गफ्फार खां के यहां हुआ था । उन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा अपने गांव और आगे की शिक्षा पन्त इंटर कालेज, हरदोई से पूरी की और 04 अगस्त 1988 को भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में भर्ती हुए। ग्रेनेडियर्स प्रशिक्षण केंद्र जबलपुर में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात वह 22 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में तैनात हुए । उनके परिवार में उनकी वीरांगना फिरदौस बेगम, उनके चार बच्चे – चाँद फरहा, आदिल खां , सिविस्ता खां और शगुफ्ता खान हैं । नायक आबिद खान के माता पिता दोनों का देहांत हो चुका है ।
नायक आबिद खान के वीरगति के पश्चात सरकार द्वारा उनके परिवार को एक पेट्रोल पंप आवंटित किया गया था और उनके एक बच्चे को नौकरी देने का वायदा किया गया था लेकिन नौकरी का वायदा आज तक पूरा नहीं हो पाया है । परिजनों का कहना है कि जब एक सैनिक वीरगति को प्राप्त होता है तो उसका परिवार लगभग बिखर जाता है। उस समय वीरगति प्राप्त सैनिक के परिजनों से सरकारी अधिकारी और जनप्रतिनिधि बड़े बड़े वादे करते हैं और देहरी से जाने के बाद भूल जाते हैं। लोगों को सैनिकों की वीरता और बलिदान के सम्मान में किए गए अपने वायदों को पूरा करना चाहिए । वीरगति प्राप्त सैनिक की वीरगति के बाद उनके परिजनों के साथ खड़ा होना, उन्हें संबल प्रदान करना ही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होती है।
– हरी राम यादव
सूबेदार मेजर (आनरेरी)
7087815074